शक्ति, भक्ति, श्रद्धा और उल्लास की नौ रात्रि है नवरात्रि। यह नौ दिन हम माँ दुर्गा के विभिन्न नौ रूपों की पूजा के साथ हमारे आस-पास मौजूद स्त्री के हर रूप की पूजा करते हैं और हमारे जीवन में उनकी महत्ता को समझते हैं।
त्रेतायुग में शुरू हुई थी दुर्गा पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार राम-रावण युद्ध से पहले राम जी ने नौ दिन तक दुर्गा माँ की आराधना की थी। वह 108 कमल से माँ की पूजा कर रहे थे। दुर्गा माँ ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कमल छुपा दिया। तब राम जी ने अपनी आँख निकालकर उनके चरणों पर चढ़ा दी क्योंकि उनकी आँखों को कमल के समान कहा जाता था। तब माँ ने न सिर्फ उनकी आँख वापस की बल्कि उन्हें युद्ध में विजयी होने का वरदान भी दिया।
कला और भक्ति का भी संगम है नवरात्री
नवरात्री के पूरे नौ दिन माता के भक्त पूर्ण समर्पण और संयम के साथ उनकी आराधना करते हैं। माँ की भक्ति में श्रद्धा के साथ ही उल्लास भी मिला होता है। नौ रातों को भक्त माँ की प्रशंसा और प्रार्थना करते हैं। गीतों की ताल से ताल मिलाकर गरबा करके माँ को प्रसन्न करते हैं। इस नृत्य में सिर्फ सुर ताल ही नहीं बल्कि भक्तों की श्रद्धा और भक्ति भी मौजूद होती है। यह बात ही नवरात्री को विशेष बनाती है जहाँ आरती की थाली, पुष्प, मंत्रोचार के साथ संगीत और नृत्य कला का भी संगम होता है।
मानव मन की बुराइयों का नाश करने आती है माँ
माँ दुर्गा जहाँ अपने भक्तों के लिए सौम्य, ममतामयी और कृपालु है, वहीं, दुनिया में मौजूद हर राक्षस के लिए कालों की काल है। इन नौ दिनों में माँ अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा के साथ ही दुष्टों का संहार करने के लिए भी पृथ्वी पर आती है। महाकाली का रूप धरकर वह ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, वासना रुपी जैसे अनेक राक्षस जो मानव के मन में छुपे है उनका माँ वध करती है। माँ की शरण में आए हर भक्त की रक्षा माँ इन राक्षसों से करती है। नवरात्री दुर्गा पूजा के उत्सव के साथ अपने भीतर छुपी इन बुराई रूपी राक्षसों का अंत करने का भी अवसर है। इस नवरात्री यदि हम इनमें से एक भी बुराई का वध कर पाए तो माँ दुर्गा की सच्ची रक्षा होगी।
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