नवरात्रि के प्रथम दिवस हिमालय की बेटी माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है। शैलपुत्री माँ दुर्गा का सबसे सौम्य रूप है। उन्हें सती का अवतार माना जाता है। माँ शैलपुत्री को प्रकृति का भी एक रूप माना जाता है। पृथ्वी पर मौजूद वृक्ष, पहाड़, नदियां, झरने सभी माँ का रूप है जिससे हमें जीवन जीने की सभी आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती है।
शिव को पाने के लिए किया घोर तप
पुराणों के अनुसार सती ने शिव भगवान से विवाह किया था। उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में माँ सती बिना निमंत्रण के शामिल होने चली गई। यज्ञ में अपनी पति शिव की बुराई सुनकर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में ही स्वयं को जला लिया। इसके बाद अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। अगले जन्म में उन्हें शैलपुत्री रूप में पूजा गया।
सौम्यता का अवतार है माँ
माँ शैलपुत्री का अवतार सौम्यता और प्रेम से परिपूर्ण है। माँ के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। माँ का वाहन वृषभ है। माँ सफ़ेद वस्त्र धारण करती है और उन्हें दूध से बना भोग प्रिय है। नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री को दूध की बर्फी, खीर, गाय के घी से बने व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए।
मूलाधार चक्र की देवी है माँ शैलपुत्री
माँ शैलपुत्री को मूलाधार चक्र की देवी भी कहा जाता है। योग साधना करने वाले योगी नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना करके अपने मूलाधार चक्र की शक्ति को जाग्रत करते है। आध्यात्मिक योग साधना का अनुशासन इसी चक्र से शुरू होता है। सिर्फ योगी ही नहीं बल्कि संपूर्ण जगत को माँ शैलपुत्री के माध्यम से ही शक्ति मिलती है।
आराध्य तक पहुंचने का रास्ता बताती है माँ
भक्त और भगवान के मिलन में माँ शैलपुत्री की आराधना का विशेष महत्व है। भगवान तक पहुंचने के लिए भक्त को आध्यत्मिकता की पराकाष्ठा तक पहुंचने की आवश्यकता होती है और इसके लिए गहराई में उतरना जरुरी है। इस गहराई तक पहुंचने में माँ शैलपुत्री हमारी मदद करती है। अपने शरीर में माँ की ऊर्जा को महसूस करने के बाद ही हम उस आनंद का अनुभव कर सकते हैं और भगवान तक पहुंच सकते हैं।
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