हम श्रीराम को मानते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि हम श्रीराम की नहीं मानते
तुलसीदास जी कहते हैं- तुलसी साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक।
इसका अर्थ है कि विद्या, विनय, ज्ञान, उत्साह, पुण्य और सत्य भाषण आदि विपत्ति में साथ देने वाले गुण एक भगवान राम के भरोसे से ही प्राप्त हो सकते हैं। विष्णु के सातवें अवतार राम के जीवन का हर एक क्षण, हर एक कार्य मनुष्य के लिए एक प्रेरणा है। उनकी जीवन गाथा सिर्फ पढ़ने नहीं बल्कि उससे सीख लेकर जीवन में उतारने के लिए है। पिता की आज्ञा मानकर वन जाने से लेकर अपनी अर्धांगिनी के लिए स्वयं के बल से रावण जैसे त्रिलोक विजेता से लड़ने तक उनके जीवन चरित्र की हर लीला हमारे लिए प्रेरणा है और उससे सीख लेना हमारे लिए आवश्यक है। हम श्रीराम को तो मानते हैं लेकिन विडंबना यह है कि हम श्रीराम की नहीं मानते। मानवता के कल्याण के लिए और विश्व के कल्याण के लिए जरूरी है कि हम श्रीराम की मानें। उनके बताए हुए रास्तों पर चलें।
बड़ों को मानें और उनकी बातें भी मानें
राम के जीवन से ली जाने वाली सबसे पहली प्रेरणा है- बड़ों की आज्ञा का पालन करना। भगवान श्रीराम जब अपनी शिक्षा पूरी करके अयोध्या वापस आए और महर्षि विश्वमित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए उन्हें साथ ले जाने आए तो राम ने बिना एक पल भी विचार किए उनकी आज्ञा का पालन किया। इसी तरह जब उन्हें पिता ने वन जाने का आदेश दिया तो वह इसके लिए तुरंत तैयार हो गए। अपनी इस लीला से राम यह सिखाते हैं कि जीवन में बड़ों कि आज्ञा पर बिना कोई प्रश्न उठाए तुरंत उसका पालन करें क्योंकि वह जो भी सोचते या करते हैं वह हमारे भले के लिए हो होता है। हम भी इसी तरह अपने बड़ों की आज्ञा का पालन करके राम के दिखाए पथ पर चल सकते हैं।
सभी को महत्व दें, सभी को समान समझें
राम के जीवन से लेने वाली दूसरी प्रेरणा है- सबको समान समझना। राम ने अपने जीवन में कभी किसी को छोटा-बड़ा नहीं समझा। उन्होने निषादराज को अपना सखा माना, शबरी के झूठे बेर खाए, वन के साधारण प्राणियों को अपनी सेना में शामिल किया, अपने शत्रु के भाई को भी उन्होंने अपनी शरण में लिया। राम ने कभी किसी के भी कद को नहीं देखा बल्कि उनके गुण को देखा और भाव को समझा। हमें भी इसी तरह कभी भी किसी की तुलना उनके रूप, रंग, जाति से नहीं बल्कि उनके गुण और भावों की कद्र करना चाहिए। कोई भी व्यक्ति अपने जन्म से नहीं बल्कि गुणों और कर्मों से बड़ा होता है और यह राम के जीवन से लेने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणा है।
एक बार जिनके हुए, सारी उम्र उन्हीं के रहें
एक पत्नी व्रत- राम के जीवन की सबसे प्रभावशाली प्रेरणा है जिसे सभी को जरूर से अपने जीवन में धारण करना चाहिए। इतने बड़े राजा होने के बावजूद राम ने कभी भी दूसरा विवाह नहीं किया। अश्वमेध यज्ञ के समय जब माँ सीता वन में थी और यज्ञ में बैठने के लिए पत्नी का होना आवश्यक था तो राम ने सीता की स्वर्ण मूर्ति बनवाकर अपने पास रखवाई लेकिन सीता के अलावा कभी किसी और को अपनी अर्धांगिनी का स्थान नहीं दिया। जीवन में तन, मन से किसी एक का ही होकर रहना सबसे बड़ा तप है और यह तप राम ने किया और उसे पूरी पवित्रता से निभाया। श्रीराम से सीख लेकर हम भी सिर्फ एक जीवनसाथी का चुनाव कर, हर परिस्थिती में उसका साथ निभाकर और साथ रहकर राम की तरह बन सकते हैं।