ब्रह्मांड की निर्माता मां कुष्मांडा देवी दुर्गा मां का चौथा स्वरूप है। मां की उत्पत्ति से पहले संपूर्ण संसार में अंधकार छाया हुआ था तब मां ने अपनी मंद मुस्कान से प्रकाश फैलाकर अंधेरे का नाश किया। मां ब्रह्मांड के मध्य में रहकर इसकी रक्षा करती है। मां की पूजा करने वाले भक्त को धन, यश और बल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है।
मां की मुस्कान से हुई संसार की रचना
पुराणों के अनुसार त्रिदेव ने जब ब्रह्मांड की रचना का संकल्प लिया तब पूरे संसार में गहरा अंधकार था। पूरी सृष्टि बिल्कुल शांत थी, कहीं भी कोई आवाज नहीं थी। तब त्रिदेवों ने जगत जननी मां दुर्गा से सहायता मांगी। मां ने अपने चौथे स्वरूप कूष्मांडा के रूप में ब्रह्मांड की रचना की। उन्होंने अपनी हल्की-सी मुस्कान से ही सृष्टि का निर्माण कर दिया। उनकी मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश फैल गया। ब्रह्मांड की रचना करने के कारण ही मां को कुष्मांडा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार मां सूर्य लोक में निवास करती है। मां के मुख मंडल पर जो तेज है उसी से सूर्य को प्रकाश मिलता है।
मां को लगाए उनका पसंदीदा भोग
मां की आठ भुजाएं होने से उन्हें अष्टभुजी भी कहा जाता है। उनके हाथों में धनुष, कमंडल, जपमाला, कमलपुष्प, चक्र, गदा और अमृतपूर्णकलश रहता है। मां कुष्मांडा सिंह की सवारी करती है। मां का प्रिय रंग हरा और नीला है इसलिए उनकी पूजा में इन दो रंगों का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। मां को दही, हलवे और पैठे का भोग लगाना चाहिए। मां की पूजा करने वाले भक्त की हर इच्छा पूरी होती है।
विद्यार्थी को मिलेगा तीव्र बुद्धि का आशीर्वाद
मां की पूजा करने से आरोग्य का वरदान मिलता है और सभी प्रकार के रोग और दोष दूर हो जाते हैं। मां अपने भक्तों को धन, यश, बल और विद्या का वरदान देती है। मां की भक्ति से जीवन का सारा अंधकार दूर हो जाता है। विद्यार्थियों को मां की पूजा जरूर करनी चाहिए इसके उनकी विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है। कुंवारी लड़कियों को मां की आराधना करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और सुहागन स्त्रियों का सुहाग अखंड रहता है।