भक्तों को शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी के रूप में तप और भक्ति का वरदान देने के बाद मां दुर्गा चंद्रघंटा का अवतार लेकर उनके सभी कष्ट हरने आती है। चंद्रघंटा मां का विवाहित रूप है जिसमें वह शिव की अर्धांगिनी है और राक्षसों के लिए काल। बाघ पर सवार होकर मां पृथ्वी का बोझ हल्का करने के लिए दुष्टों का सर्वनाश करती है। वहीं, दूसरी ओर मां अपने भक्तों को शक्ति और भक्ति का वरदान भी देती है।
मस्तक पर चंद्र धारण करने से मिला चंद्रघंटा नाम
मां चंद्रघंटा दुर्गा का तीसरा स्वरूप है। मां चंद्रघंटा पार्वती जी का विवाहित रूप है। शिव को वर रूप में प्राप्त करने के बाद मां आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है। विवाह के बाद मां ने अपने सर पर अर्धचंद्रमा धारण किया था इसलिए उन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। मां की उपासना से शांति व समृद्धि का वरदान मिलता है।
मां का प्रिय रंग है लाल
मां चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान होती है। उनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। मां के 10 हाथ है, जिसमें वह कमल, धनुष बाण, खड़ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल, गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र धारण करती है। देवी गले में श्वेत पुष्प की माला और सर पर रत्नजड़ित मुकुट धारण करती है। उनका वाहन बाघ है। मां मनुष्य शरीर में मौजूद मणिचक्र को नियंत्रित करती है। मां को लाल रंग अति प्रिय है इसलिए लाल वस्त्र पहनकर ही मां की पूजा करना चाहिए। उनकी पूजा में दूध से बने पदार्थ और शहद का उपयोग होता है।
मां की पूजा से मिलती है अलौकिक शांति
मां चंद्रघंटा की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति मिलती है। मां की आराधना से इस लोक के साथ ही परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। मां सदैव आसुरी शक्तियों का विनाश करती है इसलिए मां की पूजा करने वाले भक्त को अपने भीतर एक अद्भुत शक्ति का अनुभव होता है। मां की उपासना से आध्यात्मिक शक्ति में भी वृद्धि होती है।
शक्ति का वरदान देती है मां
दुर्गा मां के दो स्वरूप तप और त्याग की महत्ता को दर्शाते हैं। वहीं, मां का चंद्रघंटा स्वरूप मनुष्य को शक्ति का वरदान देता है। मां की पूजा करने वाले साधक को वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का वरदान भी मिलता है। मां का भक्त सभी तरह के कष्ट से मुक्त होकर बड़ी सरलता से परम पद का अधिकारी बन जाता है।
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