धर्म, सत्य, एकता और वीरता का प्रतीक है ‘दशहरा’। भगवान श्री राम ने अपने धर्म, सच्चाई और साहस से ही रावण के अन्याय और छल का नाश किया। हर साल इस अवसर पर हम रावण का पुतला बनाकर अधर्म पर धर्म की विजय का उत्सव मनाते हैं। रावण दहन एक परंपरा मात्र नहीं बल्कि एक संदेश है कि जिस तरह राम जी ने रावण के दुर्गुणों का नाश किया उसी तरह इस शुभ अवसर पर हम भी अपने अंदर छुपे ईर्ष्या, क्रोध, लालच रूपी दुर्गुणों का राम नाम रूपी अग्नि से नाश करें। रामायण में रावणवध से जुड़े और भी कई संदेश है जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं।
अपनी गलती को स्वीकारना जरुरी
रावण ने जीवन में अनेक पाप किए लेकिन अपने अंतिम समय में उसने सभी पापों को स्वीकारा और श्री राम के चरणों में खुद को समर्पित कर दिया। रावण ने श्री राम का नाम लेकर ही अपने प्राण त्यागे थे और प्रभु ने भी उसे अपने लोक में स्थान दिया। हम भी अपने जीवन में अक्सर जाने अनजाने अनेक गलतियां कर देते हैं और उन्हें स्वीकार करने में आनाकानी करते हैं। जब हम अपनी गलती स्वीकार करना सीख जाते हैं तो इससे हमारे चरित्र में सकारात्मक परिवर्तन होते है।
एकता की शक्ति को समझे
जब रामजी अपनी वानर सेना को लेकर लंका में युद्ध करने पहुंचे तो रावण ने उन्हें और वानरों को तुच्छ समझकर मन में सोचा कि यह मामूली जीव मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। इसी साधारण-सी वानर सेना ने रावण और उसके पूरे कुल का नाश कर दिया। रामायण के इस अंश से यह संदेश मिलता है कि एकता की शक्ति पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए। ऐसा कोई काम नहीं है जिसे एकसाथ मिलकर सफ़लतापूर्वक पूरा न किया जा सकें।
अपने प्रियजनों की सलाह सुने
राम-रावण युद्ध से पहले रावण के छोटे भाई विभीषण और पत्नी मंदोदरी ने उन्हें कई बार समझाया कि वह रामजी से युद्ध करने का विचार छोड़ दे लेकिन रावण ने अपने अहंकार के आगे किसी की बात नहीं सुनी। अंत में उसे श्री राम से पराजय मिली। इस घटना से हम सीख सकते हैं कि अक्सर अहंकार या किसी अन्य वजह से हम अपना अहित नहीं समझ पाते हैं। तब यदि हमारे प्रियजन कोई सलाह देते हैं तो उसपर विचार जरूर करना चाहिए। उनकी सलाह हमें किसी बड़े अहित से बचा सकती है।
सबसे बड़ा शत्रु है अहंकार
रावण ब्रह्मांड का सबसे ज्ञानी मनुष्य था, संसार का सारा धन उसके पास था और शिवजी का सबसे बड़ा भक्त होने के बावजूद सिर्फ अहंकार के कारण रावण की गिनती अन्यायी और क्रूर राक्षसों में होती है। अपने अहंकार के कारण ही उसने इतने कुकृत्य किए और यही उसके अंत का कारण बना। रावणवध से ली जाने वाली सबसे बड़ी सीख यही है कि आप कितने ही शक्तिशाली, धनवान, ज्ञानी हो जाए लेकिन कभी भी उसका अहंकार नहीं करें। अहंकार ऐसा दुर्गुण है जो आपके पूरे जीवन को नष्ट कर देता है। अहंकार में खोया हुआ व्यक्ति अपने भले बुरे की समझ की खो बैठता है और लगातार गलतियां करता चला जाता है और उसका भी अंत रावण जैसा ही होता है।
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