कांग्रेस के मैदान से बाहर होने के बाद अब इंदौर में ‘नोटा’ की चर्चा 

  • जीत की पूर्ण संभावना के बीच आखिर भाजपा को यह कदम क्यों उठाना पड़ा..?

इंदौर लोकसभा सीट पर पिछले 35 वर्षों से भाजपा का शासन रहा है। लगातार आठ बार तो सुमित्रा महाजन ही सांसद रही। उनके बाद आए शंकर लालवानी को भी जनता ने भरपूर साथ दिया। वर्तमान में इंदौर क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें भी भाजपा के पास है। मतदाताओं की तादाद के लिहाज से इंदौर लोकसभा एक बड़ा क्षेत्र है। इस बार करीब 25.13 लाख लोगों को मताधिकार हासिल है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान शंकर लालवानी ने अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी को करीब 5.48 लाख वोट से हराया था। इन चुनाव में 5045 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था। मौजूदा लोकसभा चुनाव में नाम वापसी के बाद इंदौर सीट पर चुनावी मुकाबले में 14 प्रत्याशी रह गए हैं जिनमें नौ निर्दलीय उम्मीदवार शामिल है। इन सारी सकारात्मक संभावनाओं के बाद भी भाजपा के द्वारा कांग्रेस के प्रत्याशी को अपनी पार्टी में लाने का फैसला जनता को रास नहीं आ रहा है। अधिकतर लोग मानते हैं कि इंदौर में तो बीजेपी आसानी से जीत रही थी। बात हार-जीत की नहीं बल्कि 8 लाख वोटों से जीतने की चल रही थी लेकिन यह निर्णय कहीं न कहीं भाजपा की छवि के लिए अच्छा नहीं है।

कहीं ‘नोटा’ आगे न निकल जाए

कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बंम के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने पर न सिर्फ कांग्रेस के लोग भड़के हैं बल्कि आम लोगों में भी गुस्सा दिखाई दे रहा है। इस दौरान कांग्रेस नेताओं ने मतदाताओं से खुलकर अपील की है कि वह भाजपा को सबक सिखाने के लिए 13 मई को होने वाले मतदान के दौरान नोटा का विकल्प चुनें। ऐसा लग रहा है कि यह नोटा की अपील अब धीरे-धीरे मार्केट में फेल रही है। सोशल मीडिया पर भी नोटा को वोट देने की मुहीम चल पड़ी है। कहीं ऐसा न हो कि इंदौर वह शहर बन जाए जहां नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलें। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के जीतने की सम्भावना तो शुरू से ही थी लेकिन अब शायद जीत के ज्यादा मायने न रह जाए।

जीतू बोले- भाजपा को सबक सिखाने के लिए नोटा का विकल्प चुनें

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने हाल ही में घोषणा की थी कि “चुनावी दौड़ से बाहर पार्टी इंदौर में किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा रखने वाली कांग्रेस मतदाताओं से यहां कतई नहीं कह रही है कि वे चुनाव का बहिष्कार करें लेकिन भाजपा को सबक सिखाने के लिए उनके पास नोटा का भी विकल्प है।” कांग्रेस के मैदान से बाहर होने के बाद चुनावी माहौल में नीरसता आ गई थी। कहीं हर्ष का माहौल बना तो कहीं गुस्से का। लेकिन अब नोटा के विकल्प ने इंदौर के चुनाव को रोचक बना दिया है। निश्चित रूप से जब चुनाव के रिजल्ट आएंगे तो लोग यह देखेंगे कि आखिर नोटा को कितने वोट मिले हैं।

लोकसभा इंदौर के 14 प्रत्याशी

शंकर लालवानी – बीजेपी

संजय सोलंकी – बसपा

कामरेड अजीत सिंह – सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया

अर्जुन परिहार -बहुजन मुक्ति पार्टी

पवन कुमार – अखिल भारतीय परिवार पार्टी

बसंत गहलोत -जनसंघ पार्टी

परमानंद तोलानी – निर्दलीय

रवि सिरवैया – निर्दलीय

लवीश दिलीप खंडेलवाल – निर्दलीय

अयाज अली – निर्दलीय

अभय जैन – निर्दलीय

पंकज गुप्ते – निर्दलीय

अंकित गुप्ता – निर्दलीय

मुदित चौरसिया – निर्दलीय

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