मध्यप्रदेश में प्रदूषण का बढ़ता स्तर चिंता का कारण बनता जा रहा है। साल के 70 से 80 दिन जनता खतरनाक हवा में सांस ले रही है। पहले ऐसा सिर्फ साल में 15 से 25 दिन होता था। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मुकाबले एमपी में प्रदूषण कम है लेकिन वर्तमान स्थिती भी चिंताजनक है।
राज्य में बढ़ रहा पीएम 2.5
IIT इंदौर में की गई एक स्टडी में यह बात सामने आई है। यह स्टडी एल्सेवियर के टेक्नोलॉजी इन सोसायटी जर्नल में प्रकाशित भी हुई है। आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफसर मनीष कुमार गोयल और उनकी टीम द्वारा की गई स्टडी में सामने आया कि मप्र में औसत वार्षिक पीएम 2.5 का स्तर 40-45 प्रति घन मीटर में माइक्रोग्राम है, जो राष्ट्रीय मानक के समान है। मगर प्रदूषण के चरम दिनों में यह 200-250 प्रति घन मीटर में माइक्रोग्राम तक पहुंच जाता है।
महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर
स्टडी में पाया गया कि वायु प्रदुषण का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर हो रहा है। इसकी मुख्य वजह घर के अंदर ठोस ईंधन से खाना पकाने के कारण होने वाला धुआं है। इससे महिलाओं में श्वासन संक्रमण, फेफड़ों की बीमारियां और हृदय रोग के मामले बढ़ रहे हैं।
इन उपायों से कम होगा वायु प्रदूषण
जानकारी के अनुसार पीएम 2.5 का मतलब हवा में मौजूद 2.5 माइक्रो मीटर से भी छोटे कणों से है, जो आसानी से फेफड़ों और रक्त प्रवाह में जा सकते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इससे बचने के लिए इंडस्ट्री और वाहनों से निकल रहे धुएं को कम करना होगा। हरियाली बढ़ाने का प्रयास करना होगा। स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोत का इस्तेमाल बढ़ाना होगा और वायु प्रदूषण को लेकर जागरूकता अभियान चलाना होगा।