2014 में 47 सीटें मिलने पर भाजपा ने पहली बार हरियाणा में अपने दम पर सरकार बनाई
कांग्रेस जमीनी हकीकत को समझ नहीं पाई, भाजपा का मैनेजमेंट और संगठन काम कर गया
हरियाणा में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर भाजपा ने इतिहास रचा है। 2014 में 47 सीटें मिलने पर भाजपा ने पहली बार हरियाणा में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इस बार पार्टी वह आंकड़ा भी पार कर गई। हालांकि ग्राउंड पर जो माहौल था, उसके आधार पर एग्जिट पोल से लेकर तमाम अनुमान कांग्रेस के पक्ष में थे। लेकिन भाजपा ने अपने मैनेजमेंट से एक बड़ी जीत हासिल की। उम्मीदवारों के चयन, प्रचार से लेकर जातीय समीकरणों को लेकर पार्टी की रणनीति काम कर गई। कांग्रेस जमीनी हकीकत को समझ नहीं पाई और हार गई।
हरियाणा में इस बार भाजपा ने 48 और कांग्रेस ने 37 सीटें जीती हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य में किसी पार्टी ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की हो। 2019 के चुनाव में भाजपा 40 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा पार करने में विफल रही थी, लेकिन जेजेपी और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से उसने गठबंधन सरकार बनाई थी। कांग्रेस की हार ने साबित कर दिया कि केवल सत्ता विरोध के सहारे चुनावी नैया पार नहीं हो सकती, संगठन और जमीनी स्तर पर काम जरूरी है।
भाजपा ने 2014 में 47 और 2019 में 40 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार ग्राउंड की रिपोर्ट कांग्रेस के पक्ष में थी। लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने माहौल व मूड को भांपते हुए विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मैनेजमेंट शुरू कर दिया था। जमीनी रिपोर्टों के साथ-साथ कहीं न कहीं संघ की फीडबैक के बाद भाजपा का पहला कदम था मनोहरलाल की जगह ओबीसी समुदाय के नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का। विपक्ष के पास नए मुख्यमंत्री के खिलाफ कहने को कुछ खास नहीं था। मनोहरलाल को सार्वजनिक तौर पर भाजपा ने प्रचार में शामिल नहीं किया, लेकिन जमीनी स्तर पर मैनेजमेंट में उनकी भूमिका कम नहीं हुई। इसका असर भी दिखा।
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