उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बोले- हमें वीआईपी संस्कृति को खत्म करना चाहिए, वीआईपी दर्शन का विचार ही देवत्व के खिलाफ है

कर्नाटक दौरे पर उपराष्ट्रपति ने कहा- वीआईपी संस्कृति एक पथभ्रष्टता है। यह एक अतिक्रमण है

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि हमें वीआईपी संस्कृति को खत्म करना चाहिए, खासकर मंदिरों में क्योंकि वीआईपी दर्शन का विचार ही देवत्व के खिलाफ है। धनखड़ ने यहां श्री मंजूनाथ मंदिर में देश के सबसे बड़े ‘क्यू कॉम्प्लेक्स’ (प्रतीक्षा परिसर) का उद्घाटन किया। इस सुविधा को ‘श्री सानिध्य’ के नाम से जाना जाता है। धनखड़ ने अपने मुख्य संबोधन में मौजूदा राजनीतिक परिवेश में प्रचलित प्रवृत्ति की आलोचना की, जहां लोग संवाद करने के बजाय लोकतांत्रिक मूल्यों को बाधित करते है। अपने दौरे के दौरान, उपराष्ट्रपति ने ग्रामीण छात्रों के लिए एक छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी शुरू किया, जिसे श्री क्षेत्र धर्मस्थल ग्रामीण विकास परियोजना (एसकेडीआरडीपी) या ‘ज्ञान दीपा परियोजना’ कहा जाता है।

उपराष्ट्रपति ने लोगों से विघटनकारी राजनीति से ऊपर उठने और देश को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने की अपील की। धनखड़ ने कहा कि जब किसी को वरीयता दी जाती है और प्राथमिकता दी जाती है एवं जब हम उसे वीवीआईपी या वीआईपी कहते हैं तो यह समानता की अवधारणा को कमतर आंकना है। वीआईपी संस्कृति एक पथभ्रष्टता है। यह एक अतिक्रमण है। समानता के नजरिए से देखा जाए तो समाज में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए, धार्मिक स्थलों में तो बिल्कुल भी नहीं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे समय में जब भारत कई मोर्चों पर विकास के साथ आगे बढ़ रहा है, हमें विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एक नया विमर्श शुरू करना चाहिए और एकजुट, केंद्रित और विकासोन्मुख होने के अपने संकल्प के साथ उन्हें हराना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा समाज भौतिकवाद के सिद्धांतों पर नहीं बना है। इसलिए मैं भारत के कॉरपोरेट जगत से आग्रह करता हूं कि वे आगे आएं और सीएसआर कोष का उपयोग करके स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दें। धनखड़ ने आधुनिक भारत के लिए पांच सिद्धांत भी प्रस्तावित किए, जिन्हें उन्होंने जीवंत और समावेशी लोकतंत्र के लिए ‘पंच प्रण’ कहा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक सद्भाव जो पारिवारिक स्थिरता और मूल्यों को मजबूत करेगा, पर्यावरण संरक्षण और प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों को मजबूत करेगा, ये हमारे मुख्य मूल्य होने चाहिए।

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