उज्जैन में बैकुंठ चतुर्दशी की आधी रात को हुआ हरि हर मिलन, परंपरा अनुसार देर रात निकली बाबा महाकाल की सवारी

गोपाल मंदिर पहुंचकर भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को सौंपा पृथ्वी का भार

भगवान कृष्ण को पहनाई गई बिल पत्र की माला और भगवान शिव ने पहनी तुलसी की माला

कलेक्टर, एसपी और मंदिर प्रशासक ने किया बाबा महाकाल की पालकी का पूजन

उज्जैन। भगवान महाकाल की नगरी में कार्तिक माह की बैकुंठ चतुर्दशी की अर्ध रात्रि को अदभुत नजारा देखने को मिला। यहां भगवान भोलेनाथ अपनी सवारी के साथ गोपाल मंदिर पंहुचे और परंपरा अनुसार भगवान श्री कृष्ण को पृथ्वी का भार सौंप कर कैलाश पर्वत चले गए। भगवान श्री कृष्ण और भगवान भोलेनाथ के इस मिलन को हरि हर मिलन के रूप में मनाया गया।

दरअसल हरि हर मिलन के नाम पर उज्जैन में हजारों वर्षों से चली आ रही यह परंपरा अदभुत है। यहां हरि से आशय श्री कृष्ण से और हर से आशय महादेव से है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर पृथ्वी का समग्र भार बैकुंठ के वासी श्री कृष्ण को सौंप कर चार माह के लिए कैलाश पर्वत चले जाते है। इस परंपरा के बाद से ही समग्र मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते है। रात्रि दो बजे भगवान भोलेनाथ और श्री कृष्ण के मिलन का नजारा देखते ही बन रहा था।

हरी हर मिलन के इस अवसर पर देर रात महाकाल राजा पालकी में सवार होकर अपने लाव लश्कर के साथ विभिन्न मार्गों से होते हुवे गोपाल मंदिर पहचे। इस दोरान भक्तों ने जोरदार आतिशबाजी की और भक्ति में झूमते गाते नजर आये। इस अदभुत नज़ारे को देखने के लिए देर रात तक भक्तों की भारी भीड़ जमा रही।
परम्परा अनुसार रात्रि 12 बजे महाकाल मंदिर के सभा मंडप में भगवान महाकाल को पालकी में विराजित किया गया। इसके पहले यहां कलेक्टर नीरज कुमार सिंह, एसपी प्रदीप शर्मा और मन्दिर प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने पालकी का पूजन किया। पूजन की परंपरा मन्दिर के मुख्य पुजारी घनश्याम गुरु ने निभाई। पालकी में सवार होकर बाबा महाकाल जैसे ही मन्दिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो पुलिस जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया। इसके बाद सवारी गोपाल मंदिर के लिए रवाना हुई। इस दौरान पुलिस बेंड और पुलिस जवानों का दल पालकी के आगे चल रहा था। यहां भजन मंडलियों में शामिल भक्त बाबा की भक्ति में झूमते गाते नजर आए।

बाबा महाकाल की सवारी जब गोपाल मंदिर पर पहुंची तो यहां परंपरा का एक अनूठा नजारा देखने को मिला। बाबा महाकाल के गले से बिलपत्र की माला निकाल कर भगवान कृष्ण के गले में पहनाई गई। वहीं भगवान कृष्ण के गले की तुलसी की माला निकालकर भगवान शिव को पहनाई। मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव पृथ्वी का सारा भार भगवान कृष्ण को सौंप कर कैलाश पर्वत चले जाते है। इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी के बाद से सभी मांगलिक कार्य फिर शुरू होते हैं।

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