आज आ गए हैं हमारे बाल गणेश, हर घर में गूंजेगी गणपति की जय-जयकार

जन प्रकाशन की ओर से समस्त देशवासियों को गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

आज भक्तों के प्रिय, विघ्न हरता और सुखों की वर्षा करने वाले भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र बाल गणेश का जन्मोत्सव है। अपने जन्मदिवस पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने और उन्हें दर्शन देने श्री गणेश अपने लोक को छोड़कर धरती पर आते हैं और दस दिन तक अपने भक्तों के साथ रहकर उनकी सेवा और श्रद्धा का आनंद लेते हैं। बच्चों की टोलियां बड़े मन से बप्पा का पंडाल सजाती है और देश का हर गली-मोहल्ला ‘गणपत्ति बप्पा मोरिया’ के जयकारों से गूंज उठता है।

महाराष्ट्र की गणपति पूजा है सबसे विशेष

गणपति पूजा की विशेष धूम देखने के लिए जीवन में कम से कम एक बार महाराष्ट्र जरूर जाना चाहिए। महाराष्ट्र में सभी भक्त मिलकर ढोल-ताशों के स्वर और गुलाल के रंगों के साथ बाल गणेश का स्वागत करते हैं। विशाल पंडालों में विराजित गणपति की भव्य मूर्तियों का दर्शन करके भक्तों का मन गद-गद हो जाता है। महाराष्ट्र में जितने जोर-शोर के साथ गणपति का स्वागत होता है उतने ही उत्साह से उन्हें विदा भी किया जाता है, इस विश्वास के साथ कि वह अगले साल वापस आकर हमारे सारे कष्टों, दु:खों और विघ्नों को हर कर ले जाएंगे।

इसलिए सबके प्रिय हैं गणेश

उमा-महेश के पुत्र बाल गणेश हर किसी के लाडले हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई उनके आगमन के लिए उत्सुक रहता हैं। गौरी पुत्र गणेश की मनमोहक छवि सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। लम्बी सूंड, बड़े कान, छोटी आंखें और बड़ा पेट सिर्फ उनकी शारीरक रचना नहीं बल्कि उनके गुणों का प्रतीक हैं। उनके कान का आकार सुपडे की तरह हैं जिसका अर्थ हैं कि हमें बुरी बातों को बाहर करके सिर्फ अच्छी बातें ही सुनना चाहिए। उनका लम्बा पेट इस बात का प्रतीक है कि यदि हमें दूसरों की कोई बात या राज पता है तो उसे अपने तक ही रखना चाहिए। उनकी छोटी आँखे बताती है हमारा ध्यान सदैव अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। वही गणेश जी की लंबी सूंड प्रतीक है दूरदर्शिता का। अपनी सूंड से गणेश जी दूर की वस्तुओं को भी पहचान लेते थे। इसी तरह हमें भी अपनी दूरदर्शी सोच से अपने कार्यों के परिणाम का विचार करके ही आगे बढ़ना चाहिए। उनके इन्हीं गुणों और बाल-लीलाओं से भक्तों का मन मुग्ध हो जाता है।

भक्त वत्सल है बाल गणेश

श्री गणेश समय-समय पर अपने भक्तों की परीक्षा लेने विभिन्न रूप लेते हैं और जो इस परीक्षा में पास हो जाता है उसपर अपने आशीर्वाद की बौछार कर देते हैं। गणेश जी के प्रेम को हम इस कहानी से समझ सकते है कि- एक बार की बात है गणेश जी छोटे बालक का रूप बनाकर एक गांव में गए। उनके एक हाथ में चुटकी चावल और दूसरे हाथ में एक चम्मच दूध था। वह हर घर में जाकर पूछ रहे थे- ‘क्या कोई मुझे इस दूध और चावल की खीर बना देगा?’ लेकिन किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी। तब गाँव की एक बुढ़िया जो गणेश जी की भक्त थी ने बड़े प्रेम से खीर बनने के लिए गणेश जी से वह चावल और दूध ले लिए। बालक रूपी गणेश जी ने कहा कि मैं नहा कर आता हूँ तब तक आप खीर बना लीजिये। उस बुढ़िया ने जैसे ही दूध और चावल बर्तन में डाले वह पूरे भर गए। बालक रुपी गणेश को आने में देर हो गयी तो बुढ़िया ने अपने घर में रखी गणेश जी की मूर्ति को भोग लगाया तब गणेश जी ने अपने असली रूप में उन्हें दर्शन दिए और कहा कि ‘तुम्हारी पूजा से मैं प्रसन्न हुआ। अब तुम्हारे घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी।’ लड्डू और मोदक से भी अधिक प्रिय गणेश जी को अपने भक्तों की सेवा, श्रद्धा और सच्चाई है। जो व्यक्ति इन गुणों को अपनाता है उसे ही बाल गणेश रिद्धि और सिद्धि का वरदान देते हैं।

 

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