जन प्रकाशन परिवार की ओर से सभी भारतवासियों को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का भारतीय संस्कृती में महत्वपूर्ण स्थान है। उनके द्वारा की गई लीलाएं, उनके दिए उपदेश ही नहीं बल्कि उनका संपूर्ण जीवन ही हमारे लिए एक संदेश है और यदि उसे समझ लिया जाए तो हमारे जीवन के सभी कष्ट और दुख काफी हद तक कम हो जाएंगे। जिस तरह आज हम सभी रोज अपने-अपने जीवन में संघर्ष कर रहे हैं उसी तरह कृष्ण ने भी अपने जीवन में विभिन्न संकटों का सामना किया, अनेक दुख झेले। अपने दुखों के अधीन हो जाने के कारण हम मनुष्य ही रह गए और अपने संकटों से लड़ने की हिम्मत दिखाकर मथुरा का ग्वाला श्री कृष्ण बन गया। कोई सोच सकता है कि वृंदावन का साधारण-सा गोपाल मथुरा के राजा, शक्तिशाली कंस का वध कर देगा, धर्म की स्थापना के लिए महाभारत जैसे विशाल युद्ध का संचालक बनेगा और उसका दिया गया गीता का उपदेश दुनिया के हर कोने तक पहुंचकर लोगों का मनोबल बढ़ाएगा, उन्हें जीवन जीने की कला सिखाएगा। यह सब सिर्फ तभी हो सकता है जब आपके भाव और कर्म शुद्ध, मनोबल ढृढ़ और सोच दूरदर्शी हो। श्री कृष्ण से प्रेरणा लेकर हम सब भी कम से कम अपने जीवन के पालनहार तो बन ही सकते हैं।
मोह से दूर रहने की शिक्षा
श्री कृष्ण के जीवन से जो सबसे महत्वपूर्ण सीख हमें सीखनी चाहिए वो है मोह से दूर रहने की कला। श्री कृष्ण अपने जीवन के किसी भी संबंध, व्यक्ति और वस्तु के मोह में नहीं बंधे। जब उन्हें वृंदावन छोड़कर कंस वध के लिए मथुरा जाना था तो माता यशोदा, नंद बाबा और गोपियों ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया पर वे मोह में नहीं बंधे। उन्होंने सबको समझाया कि मैं तो आपके हृदय में वास करता हूं इसलिए इस मोह को छोड़िये। महाभारत युद्ध में जब अर्जुन मोहग्रस्त हो जाता है, तब श्री कृष्ण ही उसे समझाते हैं कि यह समय मोह में पड़ने का नहीं है। इसके बाद जब श्री कृष्ण के अंतिम समय में उनकी पूरी प्रजा, नाते रिश्तेदार और द्वारिका नगरी नष्ट हो जाती है तब भी उन्हें किसी प्रकार का शोक नहीं होता है क्योंकि वह जानते थे कि यह पूरी सृष्टि नश्वर है और इसका दुख मनाने का कोई अर्थ नहीं है। कृष्ण की तरह ही हमें भी यह ध्यान रखा चाहिए कि जीवन में आये हर संबंध और वस्तु को एक न एक दिन नष्ट होना है इसलिए उनके मोह में बंधकर अपने कर्तव्यों को पूरा न करना नादानी है। मोह के बंधन में जकड़ा व्यक्ति अपने जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाता है।
बल से पहले बुद्धि का प्रयोग
कृष्ण ने अपने जीवन की अनेक परेशानियों को सिर्फ अपनी सूझ-बुझ से ही दूर कर दिया था। उनकी बुद्धिमत्ता के अनेक उदाहरण महाभारत में पढ़ने को मिलते है। जब अनेक कोशिशों के बावजूद अर्जुन द्रोणाचार्य का वध नहीं कर पाते हैं तब कृष्ण ही अश्वथामा नामक हाथी का वध करके अश्वथामा मारा गया की सुचना फैलाने का सुझाव देते हैं। इसी तरह जब बलदाऊ सुभद्रा और अर्जुन के विवाह के लिए तैयार नहीं होते हैं तो श्री कृष्ण ही अर्जुन को सुभद्रा का हरण करके विवाह करने की सलाह देते हैं। इसी तरह कालयवन राक्षस का वध करने के लिए श्री कृष्ण ने रण छोड़ने की युक्ति अपनायी थी। श्री कृष्ण से हम सीख सकते हैं कि जीवन की अनेक कठिनाईओं को सिर्फ बुद्धि का उपयोग करके भी दूर किया जा सकता है। उसके लिए किसी भी तरह की शक्ति प्रदर्शन की जरूरत नहीं है।
गलत के खिलाफ आवाज उठाना
महाभारत के अनुसार पांडव कौरवों से शान्तिपूर्वक सिर्फ अपने हिस्से के पांच गांव मांगते हैं लेकिन वह उन्हें यह भी देने से मना कर देते हैं तो पांडव दुविधा में पड़ जाते हैं कि अब क्या किया जाए तब श्री कृष्ण उन्हें अपने हक़ के लिए लड़ने की सलाह देते हैं और शुरू होता है महाभारत का विशाल युद्ध। इसी तरह कंस के अत्याचारों के विरुद्ध भी श्री कृष्ण लड़ते है और मथुरा के लोगों को उनसे मुक्त कराते है। इन कथाओं से हमें यह सीखना चाहिए कि हमारे साथ जो भी व्यक्ति अन्याय करता है, भले ही कितना बड़ा राजा और हमारा संबंधी क्यों न हो उसे चुपचाप सहने के बजाए हमें निडर होकर उसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए और न्याय मिलने तक लड़ना चाहिए।
हर प्राणी से प्रेम करना
श्री कृष्ण ने अपने जीवन में आये हर पशु-पक्षी और व्यक्ति से प्रेम किया है। चाहे वह कंस की दासी कुब्जा हो, वृंदावन की गाय, भोले-भाले ग्वाले हो, गोपियां हो, या भौमासुर की कैद में रही 16 हजार कन्याएं। जो भी कृष्ण के पास प्रेम और भक्ति लेकर आया कृष्ण ने उसे भी प्रेम दिया। कृष्ण की तरह हमें भी अपने जीवन में मिले हर प्राणी को प्रेम और सम्मान देना चाहिए। इससे न सिर्फ हमें ख़ुशी होगी बल्कि वह व्यक्ति भी प्रसन्न होगा।
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