100 वर्ष बाद इस अक्षय तृतीया पर गुरु चन्द्र की युति से बनने वाले राजयोग का संयोग…

अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – प्रातः 05:49 बजे से दोपहर 12:23 बजे तक

अवधि – 06 घण्टे 35 मिनट

तृतीया तिथि प्रारम्भ – 10 मई 2024 को 04:17 ए.एम. बजे

तृतीया तिथि समाप्त – 11 मई 2024 को 02:50 ए.एम. बजे

इंदौर। हिन्दु धर्मावलम्बियों के लिये अक्षय तृतीया का पर्व अत्यधिक शुभ एवं पवित्र दिन होता है। अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह वैशाख माह में शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन आता है। बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र वाले दिन पड़ने वाली अक्षय तृतीया को अत्यधिक शुभ माना जाता है। अक्षय शब्द का अर्थ कभी कम न होने वाला होता है। इसीलिये इस दिन कोई भी जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य करने का लाभ कभी कम नहीं होता तथा व्यक्ति को सदैव प्राप्त होता रहता है।

पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, अक्षय तृतीया सौभाग्य एवं सफलता प्रदान करती है। इस बार अक्षय तृतीया बेहद ही खास रहने वाली है। वस्तुतः 100 वर्षों के बाद गजकेसरी राजयोग में अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा।

अक्षय तृतीया पर बहुत से शुभ और मांगलिक कार्य करने की परंपरा रही है। इसके अलावा अक्षय तृतीया पर सोना-चांदी और घर की जरूरत के अन्य नए सामानों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। इस बार अक्षय तृतीया पर 100 साल बाद गजकेसरी राजयोग बनने जा रहा है। वैदिक ज्योतिष में गजकेसरी राजयोग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा की युति होती है। गुरु और चंद्रमा के बीच में मित्रता का भाव रहता है। ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन गजकेसरी राजयोग बनने से मेष, कर्क एवं सिंह राशि के जातकों पर मां लक्ष्मी, चंद्रदेव और देवगुरु बृहस्पति की विशेष कृपा रहने वाली है। गजकेसरी योग के अलावा इस दिन सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होंगे।

अधिकांश व्यक्ति इस दिन स्वर्ण आदि क्रय करते हैं, क्योंकि मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर स्वर्ण क्रय करने से आने वाले भविष्य में अत्यधिक धन-समृद्धि प्राप्त होती है। अक्षय दवस होने के कारण माना जाता है कि इस दिन क्रय किये गये स्वर्ण का कभी क्षरण नहीं होगा तथा उसमे सदैव वृद्धि ही होती रहेगी।

अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु द्वारा शासित होता है। भगवान विष्णु हिन्दु त्रिमूर्ति में से एक हैं तथा सृष्टि के संरक्षक भगवान हैं। हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग का आरम्भ अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। सामान्यतः अक्षय तृतीया एवं भगवान श्री विष्णु के छठवें अवतार की जयन्ती एक ही दिन पड़ती है, जिसे श्री परशुराम जयन्ती के नाम से जाना जाता है। किन्तु तृतीया तिथि के आराम्भिक समय के आधार पर, परशुराम जयन्ती अक्षय तृतीया से एक दिन पूर्व पड़ सकती है।

पंडित श्री विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार तीन चन्द्र दिवस, युगादि, अक्षय तृतीया तथा विजय दशमी को किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने अथवा सम्पन्न करने हेतु किसी प्रकार के मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि ये तीन दिन सभी अशुभ प्रभावों से मुक्त होते हैं।

(पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी)

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