नवरात्रि के पांचवें दिन ममतामयी मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है। कार्तिकेय की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। मां अपने भक्तों को संतान का वरदान देती है। शास्त्रों में इस दिन की पूजा का पुष्कल महत्व बताया गया है। इस दिन साधक सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्कंदमाता के ध्यान में मग्न रहता है। मां स्कंदमाता को गौरी, माहेश्वरी, पार्वती एवं उमा नाम से भी जाना जाता है। मां का वाहन सिंह है।
तारकासुर के अंत के लिए लिया स्कंदमाता अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस ब्रह्मांड में आतंक मचा रहा था। उसका अंत सिर्फ शिवजी के पुत्र कार्तिकेय के हाथों ही संभव था। तारकासुर के आतंक से देवताओं को बचाने के लिए मां पार्वती ने अपने पुत्र को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए स्कंदमाता का रूप लिया। माता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया।
सिंह की सवारी करती है मां
मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। देवी की ऊपर वाली दायीं भुजा में बाल कार्तिकेय है, नीचे वाली दायीं भुजा में कमल पुष्प है, ऊपर वाली बायीं भुजा से मां ने जगत तारण वरद मुद्रा बनाई हुई है और नीचे वाली बायीं भुजा में कमल है। मां का वर्ण श्वेत है और वह कमल के आसन पर विराजित है। कमल पर आसीन होने के कारण इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। मां सिंह की सवारी करती है।
संतान का आशीर्वाद देती है मां
मां अपने भक्तों के सभी कष्ट और दुख दूर कर देती है। संतान प्राप्ति के लिए मां की पूजा जरूर करनी चाहिए। इसके लिए आपको एक लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और नारियल बांधकर माता की गोद भर देनी चाहिए। इससे जल्द ही आपकी संतान की मनोकामना पूरी हो जाएगी। मां का प्रिय भोग केला है। इस प्रसाद को पांच कन्याओं में बांटने से देवी प्रसन्न होती है।
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