लोकसभा चुनाव के परिणाम पर क्या बोला विदेशी मीडिया?

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आम चुनाव खत्म हो गए हैं। कई मायनों में यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था। इस चुनाव की चर्चा दुनियाभर में हो रही थी। अब जबकि परिणाम भी आ गए हैं, तो आइए देखते हैं कि दुनिया के बड़े मीडिया हाउस इस बारें में क्या कहते हैं।

पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने अनेक लेख प्रकाशित किए हैं। तीन अहम थीम है इन आर्टिकल्स में-
पहली- लेख इस बात पर हर्ष प्रकट करते है कि मोदी का विजय रथ थमा नहीं किंतु मद्धम पड़ गया।
दूसरी- लेख इस बात पर भी ख़ुशी दिखाते है कि बीस करोड़ की माइनॉरिटी “मोमिन” अब शायद ख़ौफ़ के साये से निकल पाये- चैन से जी पाए।
तीसरी और सबसे इंट्रेस्टिंग- एक पूरा लेख कंगना राणावत पर है कि किस प्रकार सेक्युलर बॉलीवुड की एक राइट विंग अभिनेत्री धर्मांध पार्टी की विजेता नेत्री के रूप में उभरी है।

अमेरिका के अख़बार

न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि मोदी का आभा मण्डल मद्धम पड़ा है, चूंकि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है उन्हें ऐसे दलों के समर्थन की आवश्यकता है जो मोदी की हार्ड कोर हिंदुत्व राजनीति का समर्थन नहीं करते है।

वाशिंगटन टाइम्स के अनुसार इस चुनाव के नतीजे मोदी की आशाओं के विपरीत है, मोदी पर तुषारापात करने वाले है – चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण मोदी के आगामी प्लान्स को सेटबैक मिला है।

सीएनएन के अनुसार मोदी ने पूर्ण बहुमत ना मिलने पर भी तीसरी बार सत्ता हासिल की है। चार सौ सीट का दावा करने वाले मोदी को इस नतीजे से गहरा धक्का पहुंचा है।

ऑस्ट्रेलियन मीडिया ने भी लगभग इसी प्रकार से कवरेज दी है।

इन सब विदेशी मीडिया ने भारत चुनाव को फ्रंट पेज पर – मेन साईट पर स्थान दिया है।

ये कहा जा सकता है विदेशी मीडिया मानकर चल रहा है कि मोदी मैजिक ग़ायब हुआ है, तीसरी बार सत्ता मिली ज़रूर है किंतु गठबंधन के कारण।

सबसे मज़ेदार बात- सब के सब ये मीडिया हाउस मोदी को एक कट्टर धर्मांध हिंदूवादी नेता लिख रहे हैं- वो इमेज दशकों से बनी हुई है। किंतु भारत में राइट विंग के अनेक धड़े इससे विपरीत धारा में बह रहे हैं कि राइट विंग के मोदी जी भी सेक्युलर बन चुके है। इसी कारण कभी कभी मोदी जी चक्की के दो पाटों के बीच पिसते प्रतीत होते हैं।

जो भी हो- आगामी पांच वर्ष शायद कड़क फ़ैसले मसलन 370 या नोटबंदी जैसे ना देखें किंतु ‘विकास’ और ‘सबका साथ’ निर्विरोध चलने की आशा है।

गौरतलब है कि हमारे देश में चुनाव सात चरणों में आयोजित किए जा रहे थे, जिसका आखिरी चरण 1 जून को था और 4 जून को मतगणना का दिन था। लोकतंत्र के इस महापर्व की चर्चा देश ही नहीं दुनियाभर में हो रही है। इसके महत्व को बड़े-बड़े विद्वान ने अपने-अपने शब्दों में व्यक्त किया है।

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