मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा का दूसरा स्वरूप है। शिव को पति रूप में पाने के लिए मां ने वर्षों तक कठिन तप किया था। मां के नाम का अर्थ ही तप का आचरण करना है। मां का यह स्वरूप भक्तों को जीवन में तप और त्याग का महत्व सीखाता है। मां हमें सिखाती है कि अपने आराध्य तक पहुंचने के लिए आपके पास सच्ची भक्ति और तप करने की शक्ति होना जरूरी है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का उद्देश्य जीवन में सफलता प्राप्त करना और सिद्धियों को हासिल करना है।
बचपन से ही शुरू कर दिया था तप
पुराणों के अनुसार देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। बचपन में नारद जी से शिव के बारे में सुनकर ही उन्होंने तय कर लिया कि वह विवाह सिर्फ शिव भगवान से ही करेंगी और इसके लिए उन्होंने वन में जाकर कठोर तप करना शुरू कर दिया। इतना कठिन तप करने के कारण ही उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। मां ने अनेक वर्षों तक सिर्फ फल-फूल खाकर बिताए और तपस्या करती रही। उनकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाया।
अपने भक्त का हर कष्ट हर लेती है मां
मां की पूजा करने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और उन्हें सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यकुशलता और आंतरिक शक्ति में विस्तार का कार्य मां ब्रह्मचारिणी ही करती है। वह इस लोक में सभी चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। मां की आराधना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों में भी वृद्धि होती है। अपने भक्त के जीवन में आने वाले हर कष्ट को मां हर लेती है। यदि आप अपनी कामनाओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान अवश्य करें।
क्रोध रहित है मां ब्रह्मचारिणी
मां सफेद वस्त्र धारण करती है। उनके एक हाथ में अष्टकमल और एक हाथ में कमंडल है। मां स्वरूप सादा होने के साथ भव्य भी है। ब्रह्मचारिणी दुर्गा मां के शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र से संयुक्त है। दुर्गा मां के अन्य स्वरूप की तुलना में ब्रह्मचारिणी मां बहुत सौम्य, तुरंत वरदान देने वाली और क्रोध रहित है।