प्रेम, समर्पण और धैर्य का प्रतीक है ‘हरतालिका तीज’। शिव को वर रूप में पाने के लिए माँ पार्वती ने पूरे समर्पण, शुद्ध प्रेम और वर्षों तक धैर्य रखकर उनकी आराधना की थी। माँ पार्वती की ही तरह हर लड़की भगवान शिव से अपने लिए अच्छे पति का वरदान पाने और सुहागन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए अन्न जल का त्याग करके हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। यह व्रत परिभाषित करता है पत्नी के निःस्वार्थ प्रेम को जो खुद सारे कष्ट सहकर पति के अच्छे स्वास्थ और हमेशा उनके साथ रहने का वरदान मांगती है।
सहेली के द्वारा हरण करने के कारण कहा जाता है ‘हरतालिका’
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर जन्म लिया। बचपन में उन्होंने नारद मुनि से भगवान शिव की अनेक कथाएं सुनी और उनके गुणों पर मुग्ध होकर उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह विवाह करेंगी तो भगवान शिव से। जब माँ पार्वती के इस निर्णय पर उनके पिता राजी नहीं हुए तो माँ पार्वती की सहेली ने उनके मन की इच्छा पूरी करने के लिए उन्हें हर कर जंगल में ले गई। वन में माँ पार्वती ने शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करना शुरू कर दिया। सहेली द्वारा माँ पार्वती का हरण करने के कारण ही इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा।
सबसे कठिन होता है हरतालिका तीज का व्रत
हरतालिका तीज का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। माँ पार्वती की तरह सभी स्त्रियां 24 घंटों के लिए अन्नजल का त्याग करके बालू रेती से शिवलिंग का निर्माण करके उमामहेश की आराधना करती है। दिनभर व्रत रखने के बाद रात को जागरण भी किया जाता है। सभी महिलाएं मिलकर शिवपार्वती के भजन गाती है और उनसे अमर सुहाग का वरदान मांगती है।
इस वर्ष तीन संयोगो से बड़ी है व्रत की महत्ता
इस वर्ष हरतालिका तीज पर शुक्ल योग, ब्रह्म योग और रवि योग बनने से व्रत की महत्ता और बढ़ गई है। देश के विभिन्न राज्यों में इस त्योहार को बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार पति-पत्नी के रिश्ते की पवित्रता और प्रेम को और गहरा कर देता है। यह दर्शाता है कि प्रेम से बंधा यह रिश्ता सिर्फ इसी जन्म तक सीमित नहीं है। जिस तरह पार्वती ने हर जन्म में शिव को अपना जीवनसाथी बनाने का वरदान माँगा था उसी तरह हर स्त्री, हर जन्म में अपने पति को ही जीवनसाथी के रूप में पाने का वरदान मांगती है।