होलिका की अग्नि को समर्पित करें अपनी सारी बुराईयां

भक्त प्रह्लाद की भक्ति, विश्वास और अच्छाई का प्रतीक है होलिका दहन पर्व। त्रेतायुग में जब बुराई अपने चरम पर थी, हर तरफ राक्षसों का राज था तब एक छोटे से बालक प्रह्लाद ने अपनी भक्ति की शक्ति से उन सबका सामना किया और धरती से अधर्म का राज हटाया। होलिका के प्रतीक स्वरूप ही हम हर वर्ष कंडो और लकड़ी की होलिका बनाकर अपने अंदर छुपी बुराइयों को अग्नि को समर्पित करते हैं और ईश्वर प्राप्ति की ओर एक कदम बढ़ाते हैं।

सबसे बड़ी है भक्ति की शक्ति

पौराणिक कथा के अनुसार असुरराज हिरयणकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। इस बात से नाराज हिरयणकश्यप तरह-तरह से प्रह्लाद को प्रताड़ित करता था। इसके बावजूद प्रह्लाद अपने भक्ति मार्ग से नहीं डिगा तो हिरयणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। होलिका को वरदान में एक वस्त्र मिला था जिसे ओढ़ने से वह अग्नि में नहीं जलेगी। लकड़ियों के एक ढेर में होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ जाती है। जैसे ही लकड़ियों में आग लगाई जाती है विष्णु जी की कृपा से वह वस्त्र प्रह्लाद पर गिर जाता है और होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो जाती है। यह कथा संदेश देती है कि बुराई कितनी ही बड़ी और शक्तिशाली क्यों न हो अच्छाई से बड़ी नहीं हो सकती है। राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद, छोटी-सी उम्र में प्रह्लाद ने ईश्वर भक्ति के माध्यम से अपने जीवन की हर कठिनाई को आसानी से पार किया और अंत में ईश्वर के धाम को प्राप्त हुए। उसी तरह हम भी ईश्वर भक्ति से अपने भीतर की राक्षस रूपी बुराइयों का अंत करके अपने मुनष्य जन्म को सफल बना सकते हैं।

होलिका की पूजा सामग्री में छुपे हैं गहरे अर्थ

होलिका मात्र एक त्योहार नहीं बल्कि उस दिव्य चेतना को समझने का एक अवसर है जो हम सबके भीतर मौजूद है लेकिन मोह और माया के कारण हम उसे पहचान नहीं पाते हैं। होलिका दहन की पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री का उद्देश्य हमारे भीतर छुपी बुराइयों को खत्म करना ही है। होलिका में लकड़ी हमारे संचित कर्मों को चिन्हित करती है, अग्नि हमारी दिव्य चेतना का प्रतीक है। पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री हमारी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में मदद करती है जैसे- मौली साधक की दिव्य सुरक्षा करती है। नारियल का उपयोग अहंकार दूर करने के लिए किया जाता है। गोबर के कंडे मन और शरीर को स्थिर रखने के लिए पूजा में उपयोग किए जाते हैं। घी समर्पण की अग्नि को प्रज्ज्वलित करने के लिए और अन्न का उपयोग सम्रृद्धि और मोह से दूर रहने के लिए किया जाता है। पूजा में कपूर का अर्थ है कि एक दिन हम भी उसी दिव्य शक्ति में मिल जाएंगे। पूजा के बाद की जाने वाली तीन परिक्रमा का अर्थ अपने दुःखों से ऊपर उठकर उस दिव्य का ध्यान करने का प्रतीक है।

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