सिर्फ बातों में नहीं बल्कि असलियत में स्त्रियों का सम्मान करने से सफल होगा महिला दिवस

जनप्रकाशन मीडिया की ओर से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

पिछले कुछ वर्षों से स्त्री सशक्तिकरण का मुद्दा एक गंभीर और विचारणीय विषय रहा है। स्त्रियों को उनके अधिकार और सम्मान दिलाने की लड़ाई किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरे विश्व की है इसलिए हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। लेकिन समय के साथ यह अपने अर्थ खोता जा रहा है। सिर्फ एक दिन महिलाओं को सम्मान देकर, उनके अधिकारों की बात कर इतिश्री कर ली जाती है और अगले दिन से फिर स्त्रीयों पर होने वाले अत्याचारों की खबरों से अखबार भर जाता है। अब यह समझना बेहद जरुरी है कि कोई भी राष्ट्र महिलाओं को समान अधिकार दिए बिना और उनके विकास को अनदेखा कर के विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ सकता है।

भारत में शुरू से रही है महिलाओं के सम्मान की परम्परा

विश्व ने भले भी ही बहुत समय बाद महिलाओं के सम्मान और रक्षा की बात की लेकिन भारतीय परम्परा में शुरू से ही स्त्रियों के सम्मान की परम्परा रही है। हमने शुरू से कृष्ण से पहले राधा और राम से पहले सीता का नाम लिया है। रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना दुर्गावती देवी, माता अहिल्याबाई जैसी वीर स्त्रियों ने इसी भूमि पर जन्म लिया। मुगलों और अंग्रेज़ों के आक्रमण के बाद भारत में स्त्रियों पर अत्याचार शुरू हुए और देश में स्त्री सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस हुई। आज़ादी के बाद भी कई महिलाओं ने देश का नाम रोशन किया और यह प्रमाणित किया कि अनेक आक्रमणों के बावजूद भारत की नारियां किसी से कम नहीं है। कल्पना चावला, सरोजिनी नायडू, इंदिरा नूई, डॉ किरण बेदी, सुषमा स्वराज जैसी कई स्त्रियां है जिन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया और स्त्री शक्ति की मिसाल बनी।

एक दिन में नहीं आएगा बदलाव, लेकिन एक दिन जरूर आएगा

8 मार्च की सुबह से ही सभी स्त्रियों को महिला दिवस की शुभकामनाएं मिलना शुरू हो जाती है। विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर पूरे जोश के साथ स्त्री सशक्तिकरण, उनके अधिकार, सम्मान और रक्षा की बात की जाती है लेकिन यह सारे विषय सिर्फ बातों तक ही सीमित रह जाते हैं। अगले दिन से फिर महिलाओं का शोषण, अपमान और अत्याचार शुरू हो जाते हैं। स्त्रियों को सशक्त बनाने के लिए सिर्फ बातें नहीं बल्कि काम करने की आवश्यकता है। जब तक समाज महिलाओं को अपना एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानकर उनके विकास की चिंता नहीं करेगा तब तक महिला दिवस मात्र एक दिवस बनकर रह जाएगा। स्त्रियों के साथ पुरुषों को भी उनके विकास के लिए कुछ कदम आगे बढ़ाने होंगे, उनका सहयोग करना होगा, सम्मान करना होगा और यह सिर्फ एक दिन से नहीं होगा, इसे अपनी आदतों में शामिल करने से ही बदलाव आएगा ।

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