शिव और शक्ति के एकत्व का उत्सव है ‘महाशिवरात्रि’। जटाजूट धारी, तपस्वी, योगी, औघड़ शिव को संसारिकता में लाने का जिम्मा मैना और हिमालय की पुत्री पार्वती अपने ऊपर लेती है और तपस्वी को अपने तप से वर स्वरूप प्राप्त करती है। यह त्योहार शिव-पार्वती के प्रेम के साथ ही माँ पार्वती के तप और त्याग को भी समर्पित है। माँ पार्वती का तप बताता है कि यदि ठान लिया जाए तो शिव जैसे बैरागी भी संसार के राग गा सकते हैं।
भूतों के साथ चली भगवान शिव की बारात
शिवरात्रि की कथा का सबसे अनोखा हिस्सा है ‘शिव बारात’। भूतों के गण, पशुओं के नाथ शिव ठहरे स्वयंभु, हिमालय पर तप करने वाले तपस्वी। उनका न कोई माता-पिता है न भाई बंधु पर पार्वती को ब्याहने के लिए बरात ले जाना जरुरी है इसलिए शिव की बरात में देवता, राक्षस, पशु, पक्षी, किन्नर, भुत, पशु, पिशाच सब शामिल हुए और झूमते, गाते-बजाते हिमालय के घर की ओर निकल पड़े। इस अनोखी बारात का दर्शन करके हर कोई हर्षित और आश्चर्यचकित रह गया। शिव की बारात से भी अनोखा था उनका श्रृंगार। तन पर भस्म रमाए, कानों में कर्क कुण्डल, गले, कमर और हाथों में सांप और मृगछाल पहने हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए अपना योगी स्वरूप धरकर शिव अपनी गौरा को ब्याहने चले। शिव की यह बारात संदेश देती है कि भोले शंकर हर किसी के है। समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं जो शिव से छूटा हो। दूसरा बड़ा संदेश यह कि शादी हों या अन्य कोई अवसर अपने असल स्वरूप और चरित्र को धारण करके शामिल होना चाहिए।
पवित्र प्रेम का उदाहरण है शिव-पार्वती
माँ पार्वती सती का स्वरूप है, जो पूर्वजन्म में शिव की अर्धांगिनी थी। सती के वियोग में ही शिव ने फिर से योगी का वेश धारण किया। जब शिव को मालूम हुआ की माँ पार्वती सती का ही अवतार है तब जाकर वह उनसे विवाह करने के लिए तैयार हुए। यह कथा दर्शाती है कि सात जन्म साथ रहने का वादा करना एक रस्म भर नहीं है। भोले शंकर ने अपने उस वचन को निभाया और हर जन्म में शक्ति को ही अपनी अर्धांगिनी के रूप में धारण किया। शिव के इन्हीं गुणों के कारण हर लड़की अपने जीवन में शिव जैसे पति को पाने की मनोकामना करती है। योगी का जीवन जीते हुए भी शिव ने प्रेम की उस पवित्रता और सच्चाई को समझा और निभाया जो महल में रहने वाला राजा भी शायद कभी न निभा पाए। असल में महशिवरात्रि ही प्रेम का सबसे बड़ा उत्सव है जिसके माध्यम से हम शिव के अटल प्रेम और पार्वती के समर्पण, त्याग और श्रद्धा को याद कर उनकी जय जयकार करते हैं।