मारुतीनंदन से सीखें भक्ति और शक्ति का पाठ

राम भक्त ‘हनुमान’, केसरीनंदन का इससे सुंदर परिचय नहीं हो सकता है। कहते हैं “मुक्ति चाहिए तो राम का नाम लो और भक्ति चाहिए तो हनुमान के नाम का जप करो।” राम भक्ति ने ही हनुमानजी को देवता का दर्जा दिलाया है। पवनपुत्र के हर कार्य का आरंभ और अंत राम नाम के साथ ही होता है। राम नाम की शक्ति से ही केसरीनन्दन ने अपने जीवन में बड़े-बड़े कार्य किए और ‘संकटमोचन’ कहलाए। हम भी हनुमान जी के जीवन से सीख लेकर भक्ति के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं और अपने मनुष्य जीवन को सफल बना सकते हैं।

अहंकार से दूरी

सीता माता का पता लगाना, संजीवनी बूटी लाना और पाताल लोक में अहिरावण से राम और लक्ष्मण को सुरक्षित वापस लाने जैसे अनेक बड़े कार्य हनुमान जी ने अपनी शक्ति और बुद्धि से पूर्ण किए लेकिन कभी भी इस बात का अहंकार नहीं किया। उन्होंने अपना हर काम राम को समर्पित किया और उसकी सफलता का श्रेय भी श्री राम को ही दिया। हम अक्सर छोटी-छोटी उपलब्धियों पर बड़ा घमंड करने लगते हैं, स्वयं को बड़ा मानने लगते हैं। जब भी जीवन में अहंकार हो तो एक बार हनुमान जी के कार्यों का स्मरण करना चाहिए और सीखना चाहिए कि हम तो मात्र एक जरिया है, हमारे द्वारा किए गए सारे काम तो प्रभु की इच्छा से ही हो रहे है। जब यह भावना मन में आ जाएगी तो अपने आप मन से अहंकार दूर हो जाएगा।

हमेशा राम का भरोसा

हनुमान जी का हर काम राम नाम के साथ ही होता है। समुद्र लांघना हो या लंका दहन हनुमान जी ने हर काम राम का नाम लेकर किए है या और उनक सारे काम सरलता से पुरे हो गए। इसी तरह जब हम अपने जीवन की डोर भगवान के हाथों में दे देते है तो हर मुश्किल आसान हो जाती हैं। तुलसीदास जी कहते है कि “राम से बड़ा राम का नाम होता है”। जब आप हर समय, हर पल राम नाम लेते हैं तो आपकी सारी चिंताएं, दुःख दूर हो जाती हैं।

शक्तियों का सदुपयोग

माता सीता ने हनुमान जी को आठ सिद्धियों और नौ निधियों का वरदान दिया था। बचपन में हनुमान जी को देवताओं ने भी कई सारी शक्तियां प्रदान की थी। हनुमान जी ने इन सभी वरदानों और शक्तियों का उपयोग सदैव धर्म, संतों की रक्षा, परोपकार और राम के काम के लिए किया। हम अक्सर अपने जीवन में मिलने वाली शक्तियों और साधनों का उपयोग स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करने और दूसरों को दुख देने के लिए करते हैं। हनुमान जी से सीखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि जीवन में मिलने वाली शक्तियों का उपयोग स्वयं के लिए नहीं बल्कि संसार के उद्धार के लिए किया जाना चाहिए।

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